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आज भारत में सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले स्ट्रीट फूड्स में से एक बन चुके हैं। पहाड़ी राज्यों से शुरू होकर यह व्यंजन अब देश के हर छोटे-बड़े शहर में लोकप्रिय हो गया है। चाहे मॉल हो, स्कूल के बाहर की दुकान हो या कोई स्ट्रीट फूड कार्नर, हर जगह मोमोज़ मिल जाते हैं। बच्चों, युवाओं और यहां तक कि वयस्कों के बीच इसका क्रेज़ तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन जितना यह व्यंजन स्वादिष्ट और सस्ता है, उतना ही यह सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है — खासकर तब, जब यह गंदे तेल, घटिया सामग्री और अस्वच्छ परिस्थितियों में तैयार किया गया हो।

भारत में मोमोज़ की लोकप्रियता

मोमोज़ की शुरुआत तिब्बत और नेपाल से मानी जाती है, लेकिन यह भारत में खासतौर पर दिल्ली, उत्तराखंड, सिक्किम, और नॉर्थ ईस्ट के रास्ते आया। धीरे-धीरे मोमोज़ की विविधता बढ़ती गई — वेज, चिकन, मटन, फिश, चीज़, कॉर्न, पनीर आदि में। अब तो तंदूरी मोमोज़, फ्राइड मोमोज़, ग्रेवी मोमोज़ और चॉकलेट मोमोज़ भी मिलने लगे हैं। इसकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण इसका सस्ता, फटाफट मिलने वाला और स्वादिष्ट होना है।

मोमोज़ कैसे बनते हैं और क्यों होते हैं अस्वस्थ?

मोमोज़ आमतौर पर मैदे (Refined Flour) से बनते हैं, जिसमें फाइबर और पोषक तत्व ना के बराबर होते हैं। मैदे को चिकना और मुलायम बनाने के लिए बेकिंग सोडा या अन्य रसायन मिलाए जाते हैं जो शरीर में गैस, अपच और एसिडिटी पैदा कर सकते हैं।

momosघटिया सामग्री का उपयोग (वेज और नॉन-वेज दोनों में):

वेज मोमोज़ आमतौर पर सस्ती और जल्दी बनने वाली स्ट्रीट फूड के रूप में पसंद किए जाते हैं, लेकिन इनमें इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों की गुणवत्ता कई बार बेहद खराब होती है। कई विक्रेता बासी सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं और उन्हें ठीक से धोते भी नहीं हैं, जिससे फूड पॉयजनिंग या पेट से जुड़ी अन्य समस्याएं हो सकती हैं। वहीं, नॉन-वेज मोमोज़ में स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। कई बार इनमें इस्तेमाल किया जाने वाला मीट खराब, सड़ा या एक्सपायर्ड होता है, जिसे बार-बार फ्रीज कर उपयोग में लाया जाता है। इससे उसमें हानिकारक बैक्टीरिया पनपने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ रिपोर्टों और जांचों में यह भी सामने आया है कि सड़क किनारे मिलने वाले मोमोज़ में रैट मीट या कुत्ते का मांस तक मिलाया गया है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। ऐसे में स्वाद के चक्कर में स्वास्थ्य से समझौता करना भारी पड़ सकता है।

तेल का दुरुपयोग

फ्राइड या तंदूरी मोमोज़ बनाने में जो तेल उपयोग होता है, वह अधिकतर बार-बार गर्म किया गया बासी तेल होता है। ऐसा तेल शरीर के लिए बेहद हानिकारक होता है क्योंकि इसमें ट्रांस फैट्स बन जाते हैं जो हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल और लीवर से जुड़ी समस्याओं को जन्म दे सकते हैं। यह तेल कैंसरकारी तत्व भी पैदा कर सकता है।

लाल मिर्च की चटनी: स्वाद में तीखी, शरीर के लिए नुकसानदायक

मोमोज़ के साथ मिलने वाली तीखी लाल मिर्च की चटनी स्वाद तो बढ़ाती है, लेकिन यह पेट और आंतों पर बुरा असर डाल सकती है।

  • यह चटनी कई बार सिंथेटिक लाल रंग और नकली एसिडिक तत्वों से बनाई जाती है जो पेट में जलन, गैस, अल्सर और एसिडिटी का कारण बनते हैं।
  • ज्यादा तीखी चटनी लंबे समय तक खाने से आंतों की परत (intestinal lining) को नुकसान पहुँच सकता है।
  • बच्चों या पेट की समस्या वाले लोगों को यह चटनी पूरी तरह से टालनी चाहिए।

शरीर पर बुरे प्रभाव

  • पाचन संबंधी समस्याएं – मोमोज़ में फाइबर नहीं होता और इसमें मिलने वाले मैदे, तेल और मसाले अपच, गैस, कब्ज, और एसिडिटी का कारण बनते हैं।
  • वजन बढ़ना – मोमोज़ में उच्च कैलोरी और कम पोषण होता है, जिससे वजन तेजी से बढ़ सकता है।
  • त्वचा समस्याएं – बासी तेल और रसायन युक्त चटनी से चेहरे पर मुंहासे और एलर्जी हो सकती है।
  • फूड पॉयज़निंग – अस्वच्छ वातावरण और सड़ा मांस इस्तेमाल करने की वजह से उल्टी, दस्त और फूड पॉयज़निंग की समस्या आम है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर – जब शरीर में ऐसे हानिकारक तत्व बार-बार प्रवेश करते हैं, तो रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है।

सावधानियां और सुझाव

  • सड़क किनारे के बजाय साफ-सुथरे, विश्वसनीय स्थानों से ही मोमोज़ खरीदें।
  • कोशिश करें कि घर पर हाइजीनिक तरीके से सब्ज़ियों या पनीर से मोमोज़ बनाएं।
  • फ्राइड मोमोज़ और बहुत तीखी चटनी से परहेज करें।
  • बच्चों को नियमित रूप से मोमोज़ खिलाना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • यदि पेट में दर्द, उल्टी या दस्त जैसे लक्षण मोमोज़ खाने के बाद हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

निष्कर्ष

मोमोज़ भले ही एक स्वादिष्ट और लोकप्रिय स्नैक बन चुका हो, लेकिन इसकी अंदरूनी हकीकत और सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। खासकर जब यह गंदे तेल, सड़े मांस और रसायन युक्त चटनी के साथ खाया जाता है, तो यह हमारे शरीर के लिए एक धीमा ज़हर बन सकता है।

स्वास्थ्य के लिए समझदारी इसी में है कि स्वाद और सेहत के बीच संतुलन बनाएं और ऐसे खाद्य पदार्थों को सीमित मात्रा में ही खाएं।

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