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भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। प्राचीन ऋषियों ने जीवन को दीर्घ, सुखद एवं रोगमुक्त बनाने के लिए आयुर्वेद, योग और प्राणायाम की परंपरा स्थापित की। इन सभी का मूल उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से स्वस्थ रखना है। इसी उद्देश्य को दर्शाते हुए अनेक संस्कृत श्लोकों की रचना हुई है जो आज भी हमारे लिए पथप्रदर्शक हैं।

आइए जानते हैं कुछ ऐसे प्रमुख संस्कृत श्लोक, जो स्वस्थ, रोगमुक्त और फिट जीवन के सूत्र प्रस्तुत करते हैं — अर्थ सहित:

 

“शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।”

अर्थ: शरीर ही सभी धर्मों का पहला साधन है।

अर्थ: यह श्लोक बताता है कि यदि हमारा शरीर स्वस्थ नहीं है तो हम किसी भी प्रकार के कर्तव्य या धर्म का पालन नहीं कर सकते। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना प्रत्येक व्यक्ति की पहली जिम्मेदारी है।

 

“आरोग्यम् परमं भाग्यम्।”

अर्थ: आरोग्य (स्वास्थ्य) सबसे बड़ा सौभाग्य है।

अर्थ: यह श्लोक इस बात को स्पष्ट करता है कि जीवन में धन, प्रसिद्धि, या पद कुछ भी हो, यदि स्वास्थ्य नहीं है तो सब व्यर्थ है। इसलिए आरोग्य को सबसे बड़ा धन माना गया है।

 

“नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।

न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्॥”

(भगवद्गीता 2.66)

अर्थ: असंयमी व्यक्ति की बुद्धि स्थिर नहीं होती, और जिसकी बुद्धि स्थिर नहीं होती, उसकी भावना शुद्ध नहीं होती; ऐसे व्यक्ति को शांति नहीं मिलती, और जो अशांत है, उसे सुख कैसे मिल सकता है?

यह श्लोक मानसिक और भावनात्मक संतुलन का महत्व बताता है। संयमित जीवन, ध्यान और योग के माध्यम से ही हम मानसिक शांति और फिर सुख प्राप्त कर सकते हैं।

 

“हितभुक् मितभुक् च स्याद् ऋतुभुक् तद्विधः प्रियः।”

अर्थ: जो व्यक्ति हितकारी, सीमित और ऋतुओं के अनुसार आहार करता है, वही प्रिय और स्वस्थ रहता है।

यह श्लोक आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों में से एक है – उचित आहार और जीवनचर्या। आज के युग में जहां जंक फूड और अनियमित खानपान से बीमारियाँ बढ़ रही हैं, यह श्लोक अत्यंत प्रासंगिक है।

 

“दीर्घमायुरारोग्यमर्थसिद्धिं

जस्सं यशः प्रजां पशुं शुभम।”

अर्थ: दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य, धन की प्राप्ति, यश, संतान, पशुधन तथा शुभता – ये सभी जीवन के लिए आवश्यक हैं।

यह श्लोक जीवन के सात स्तंभों को दर्शाता है। सभी की नींव है – आरोग्य। यदि स्वास्थ्य ठीक हो, तो बाकी सब सम्भव है।

 

“योगः चित्तवृत्ति निरोधः।”

(पतंजलि योग सूत्र 1.2)

अर्थ: योग का अर्थ है – मन की चंचल वृत्तियों को नियंत्रित करना।

योग केवल शरीर के व्यायाम तक सीमित नहीं है, यह मानसिक शुद्धि, आत्मिक शांति और समग्र स्वास्थ्य का साधन है।

 

“धैर्यमोजः स्मृतिर्दत्तिर्मनश्शुद्धिर्महोदयः।

अभ्यासेन बिना न स्याद्योगसिद्धिर्न संशयः॥”

अर्थ: धैर्य, बल, स्मृति, बुद्धि, मन की शुद्धता – यह सब अभ्यास से ही प्राप्त होता है। योगसिद्धि बिना अभ्यास के नहीं मिल सकती।

यह श्लोक बताता है कि स्वास्थ्य और फिटनेस एक दिन का काम नहीं है। यह सतत अभ्यास, संयम और संकल्प का परिणाम है।

निष्कर्ष

संस्कृत श्लोकों में छिपे जीवन-मूल्य आज के युग में और भी प्रासंगिक हो गए हैं। जब जीवन भागदौड़ से भरा है, अनियमित दिनचर्या और तनाव आम हो गए हैं, ऐसे में यह श्लोक न केवल प्रेरणा देते हैं, बल्कि व्यावहारिक मार्ग भी सुझाते हैं।

यदि हम अपने जीवन में इन सिद्धांतों को अपनाएं — संतुलित आहार, नियमित योग, संयमित जीवनशैली, और सकारात्मक सोच — तो हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, बल्कि मानसिक रूप से भी रोगमुक्त, ऊर्जावान और प्रसन्नचित्त बन सकेंगे।

 

“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।”

तो आइए, इन श्लोकों को जीवन में अपनाकर हम एक फिट, रोगमुक्त और संतुलित जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।

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