हील प्रिक ब्लड टेस्ट, जिसे गथरी टेस्ट (Guthrie Test) भी कहा जाता है, एक सरल लेकिन बेहद महत्वपूर्ण जाँच है जो नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य की प्रारंभिक जांच के लिए की जाती है। इस परीक्षण का उद्देश्य जन्म के कुछ ही दिनों बाद ऐसे गंभीर रोगों का पता लगाना है, जो अगर समय रहते न पकड़े जाएँ तो बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
हील प्रिक ब्लड टेस्ट क्या है?
हील प्रिक टेस्ट एक प्रकार की स्क्रीनिंग प्रक्रिया है जिसमें शिशु की एड़ी में सुई चुभाकर कुछ बूंदें रक्त की ली जाती हैं। इस रक्त की सहायता से चिकित्सक कुछ जन्मजात बीमारियों की पहचान करते हैं। इस परीक्षण को “गथरी टेस्ट” कहा जाता है क्योंकि इसे सबसे पहले डॉक्टर रॉबर्ट गथरी ने 1960 में विकसित किया था।
यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
इस टेस्ट का मुख्य उद्देश्य है:
- जन्मजात बीमारियों की शीघ्र पहचान
- इलाज समय पर शुरू करना
- जटिलताओं से बचाव
- शिशु के सामान्य विकास को सुनिश्चित करना
अनेक रोग ऐसे होते हैं जो जन्म के समय तो दिखते नहीं, लेकिन बाद में गंभीर लक्षणों के रूप में सामने आते हैं। हील प्रिक टेस्ट इन बीमारियों की पहचान करने में मदद करता है।
किन रोगों की जांच की जाती है?
हील प्रिक टेस्ट से निम्नलिखित बीमारियों की पहचान की जा सकती है:
- हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) – थायरॉयड हार्मोन की कमी से मानसिक विकास प्रभावित होता है।
- सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia) – यह एक अनुवांशिक रक्त विकार है।
- फेनिलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria – PKU) – यह एक चयापचय विकार है जिसमें शरीर प्रोटीन को सही से नहीं तोड़ पाता।
- सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis) – यह फेफड़ों और पाचन तंत्र को प्रभावित करने वाला रोग है।
- कॉनजेनिटल एड्रेनल हाइपरप्लासिया (Congenital Adrenal Hyperplasia – CAH) – यह हार्मोन उत्पादन से जुड़ी एक गंभीर स्थिति है।
- गालैक्टोसीमिया (Galactosemia) – शरीर दूध में पाए जाने वाले शर्करा को नहीं पचा पाता।
कुछ देशों और क्षेत्रों में यह टेस्ट अन्य बीमारियों के लिए भी किया जाता है।
परीक्षण की प्रक्रिया
1. परीक्षण का समय
हील प्रिक टेस्ट सामान्यतः शिशु के जन्म के 48 से 72 घंटे के भीतर किया जाता है। यदि शिशु समय से पहले पैदा हुआ है या अस्पताल में ज्यादा दिन रहा है, तो यह टेस्ट थोड़ी देरी से किया जा सकता है।
2. नमूना लेने की प्रक्रिया
•सबसे पहले शिशु की एड़ी को थोड़ी देर गर्म पानी या ऊनी कपड़े से हल्का गर्म किया जाता है ताकि रक्त प्रवाह बढ़े।
•फिर एक बाँधने वाली पट्टी (लैंसेट) से एड़ी में छोटा सा चीरा लगाया जाता है।
•रक्त की कुछ बूंदें एक विशेष फिल्टर पेपर पर डाली जाती हैं।
•पेपर को सुखाकर प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा जाता है।
पूरी प्रक्रिया में 2–3 मिनट से अधिक का समय नहीं लगता और यह आमतौर पर सुरक्षित व दर्दरहित होती है।
परिणाम और उनका महत्त्व
1. सामान्य परिणाम
यदि जांच के परिणाम सामान्य आते हैं, तो शिशु को किसी अतिरिक्त जांच की आवश्यकता नहीं होती। अधिकांश बच्चों के परिणाम सामान्य होते हैं।
2. असामान्य परिणाम
यदि किसी बीमारी की संभावना पाई जाती है, तो डॉक्टर आगे की विस्तृत जांच करने की सलाह देते हैं। एक बार पुष्टि हो जाने के बाद समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है। शीघ्र उपचार से शिशु का जीवन सामान्य रह सकता है।
यह टेस्ट क्यों जरूरी है?
हील प्रिक टेस्ट की आवश्यकता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
- बीमारियों की प्रारंभिक पहचान: इससे रोग की गंभीरता को रोकने में मदद मिलती है।
- जीवनरक्षक: समय पर इलाज से कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
- भविष्य की जटिलताओं से बचाव: यह शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं को रोका जा सकता है।
- सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त: यह परीक्षण भारत सहित कई देशों में स्वास्थ्य विभाग की सिफारिश के तहत होता है।
माता-पिता को क्या जानना चाहिए?
- यह टेस्ट अनिवार्य नहीं है, लेकिन अत्यधिक सिफारिश की जाती है।
- माता-पिता को इस परीक्षण के फायदे और प्रक्रिया के बारे में सही जानकारी लेनी चाहिए।
- यदि परिवार में कोई अनुवांशिक रोग है, तो यह जांच और भी आवश्यक हो जाती है।
- यदि अस्पताल में यह जांच नहीं की जाती, तो माता-पिता निजी लैब से भी यह टेस्ट करवा सकते हैं।
टेस्ट से जुड़े मिथक और सच्चाई
मिथक: यह टेस्ट शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है।
सच्चाई: यह टेस्ट पूरी तरह से सुरक्षित होता है और इसमें बहुत हल्का दर्द होता है।
मिथक: केवल बीमार दिखने वाले बच्चों को ही यह टेस्ट कराना चाहिए।
सच्चाई: यह टेस्ट हर नवजात के लिए जरूरी होता है क्योंकि कई रोग जन्म के समय नजर नहीं आते।
हील प्रिक टेस्ट की कीमत कितनी होती है?
हील प्रिक ब्लड टेस्ट की कीमत विभिन्न अस्पतालों, प्रयोगशालाओं और शहरों में अलग-अलग हो सकती है। यह मुख्यतः निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है:
- अस्पताल सरकारी है या निजी
- टेस्ट में कितनी बीमारियों की स्क्रीनिंग की जा रही है
- प्रयोगशाला की साख और तकनीक
- स्थान (मेट्रो सिटी, टियर-2 या ग्रामीण क्षेत्र)
सामान्य मूल्य सीमा:
- सरकारी अस्पतालों में: यह टेस्ट निशुल्क (Free) या नाममात्र शुल्क (Rs. 100 – Rs. 300) में उपलब्ध होता है।
- निजी अस्पतालों या लैब में: कीमत आमतौर पर Rs. 1200 से Rs. 5000 तक होती है।
- उन्नत या विस्तृत स्क्रीनिंग के साथ: कुछ विशेष लैब इस टेस्ट में 40+ बीमारियों की जाँच करती हैं, जिनकी कीमत Rs. 6000 – Rs. 10,000 तक जा सकती है।
महत्वपूर्ण सुझाव: माता-पिता को टेस्ट कराने से पहले यह अवश्य पूछना चाहिए कि उसमें कौन-कौन सी बीमारियाँ शामिल हैं और रिपोर्ट कितने दिन में आएगी।