Breaking News

भारत एक तेज़ी से विकसित हो रहा देश है। यहां हर शहर और गांव में कहीं न कहीं निर्माण कार्य चलता रहता है – कहीं सड़क बन रही होती है, तो कहीं पुल, फ्लाईओवर, मेट्रो लाइन या फिर निजी घर और फ्लैट्स का निर्माण हो रहा होता है। यह विकास की निशानी है, लेकिन इसके साथ ही यह लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा भी बनता जा रहा है। निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल, रासायनिक तत्व और गैसें हवा को प्रदूषित कर देती हैं और बच्चों, बड़ों तथा बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती हैं।

निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियाँ जैसे कि सीमेंट, बालू, बजरी, पेंट और ईंधन आदि से कई तरह की हानिकारक गैसें और धूल निकलती हैं। इनसे हवा में मौजूद विषाक्त तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे सांस संबंधी समस्याएं, त्वचा रोग और आंखों में जलन जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा, दीर्घकालिक संपर्क में रहने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का भी खतरा हो सकता है।

construction-site

निर्माण स्थलों से निकलने वाली प्रमुख हानिकारक गैसें

निर्माण कार्यों के दौरान अनेक प्रकार की गैसें और धूलकण वातावरण में फैलते हैं। इनमें से कई मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं।

  • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO): यह गैस डीजल या पेट्रोल से चलने वाली मशीनों और वाहनों से निकलती है। यह एक रंगहीन और गंधहीन गैस है जो शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित करती है। इसके कारण सिरदर्द, थकान, चक्कर आना और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
  • सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): यह गैस जलते ईंधन और औद्योगिक कचरे से निकलती है। यह आंखों में जलन और सांस संबंधी समस्याएं पैदा करती है, विशेष रूप से दमा और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित लोगों के लिए खतरनाक होती है।
  • वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs): पेंट, सॉल्वेंट, सीलेंट और प्लास्टिक से निकलने वाले ये यौगिक दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार होते हैं। इनसे त्वचा पर रिएक्शन, सिरदर्द, मानसिक भ्रम और यहां तक कि कैंसर भी हो सकता है।
  • सिलिका डस्ट: यह सूक्ष्म धूलकण मुख्य रूप से सीमेंट, कंक्रीट और पत्थरों के कटाई-छंटाई के समय निकलते हैं। लंबे समय तक इस धूल के संपर्क में रहने से फेफड़ों की बीमारी ‘सिलिकोसिस’ हो सकती है, जो एक गंभीर रोग है।

प्रदूषण में निर्माण कार्यों का योगदान

निर्माण कार्य वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बन चुके हैं। इस प्रक्रिया में बहुत अधिक धूलकण हवा में फैलते हैं, जिन्हें PM2.5 और PM10 कहा जाता है। ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि सांस के ज़रिये सीधे फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, निर्माण स्थलों पर प्रयुक्त भारी वाहन, डीजल जनरेटर, कटर और ड्रिल मशीनें बहुत अधिक धुआं और ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करती हैं।

प्लास्टिक, रंग, सीमेंट के बैग और अन्य निर्माण कचरे का अनुचित निपटान जल और मृदा प्रदूषण का भी कारण बनता है। यह ना केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि आसपास के निवासियों की जीवनशैली को भी प्रभावित करता है।

सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदम

सरकार ने निर्माण स्थल पर उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव, ढंके हुए ट्रक, और निर्माण स्थल पर हरे पर्दों (ग्रीन नेट्स) का प्रयोग अनिवार्य किया है।
  • CPCB (Central Pollution Control Board) ने बड़े निर्माण प्रोजेक्ट्स के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति और प्रदूषण नियंत्रण गाइडलाइन जारी की हैं।

राज्य सरकारें, विशेष रूप से दिल्ली सरकार ने, एंटी-स्मॉग गन, कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट ऐप और ग्रीन कवर बढ़ाने जैसे नवाचारों को अपनाया है ताकि प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सके।

आम नागरिकों और निर्माण कंपनियों के लिए जरूरी सावधानियाँ

निर्माण स्थलों पर काम करने वाले श्रमिकों और आसपास रहने वाले नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए कुछ जरूरी सावधानियाँ अपनानी चाहिए:

  • हमेशा मास्क पहनें, विशेष रूप से N95 या उससे ऊपर की गुणवत्ता वाले।

  • धूल वाले वातावरण में आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मा लगाएं।

  • घर के खिड़की-दरवाजे बंद रखें जब आसपास निर्माण कार्य हो रहा हो।

  • छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुज़ुर्गों को निर्माण स्थल के आसपास जाने से बचाएं।

  • निर्माण कंपनियों को नियमित रूप से साइट पर पानी का छिड़काव करना चाहिए और मलबे को ढककर रखना चाहिए।

  • निर्माण स्थल पर कार्य कर रही मशीनों का नियमित निरीक्षण और मेंटेनेंस कराना चाहिए ताकि धुएं और ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सके।

अन्य महत्वपूर्ण सुझाव और देखभाल के तरीके

  • यदि आप निर्माण स्थल के पास रहते हैं, तो अपने घर में एयर प्यूरीफायर लगाएं।

  • रोजाना गुनगुने पानी का सेवन करें और भाप लें ताकि धूल से राहत मिल सके।

  • पौष्टिक आहार लें जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।

  • निर्माण कंपनियों और प्रशासन को चाहिए कि नियमों का पालन न करने वालों पर जुर्माना लगाया जाए।

निष्कर्ष

निर्माण कार्य विकास का आवश्यक हिस्सा है, लेकिन अगर यह अनियंत्रित रूप से हो तो लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डालता है। सरकार, निर्माण कंपनियों और आम नागरिकों को मिलकर जिम्मेदारी से काम करना होगा। सही जागरूकता, नियमों का पालन और आवश्यक सावधानियाँ अपनाकर हम इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। जब तक हम स्वयं सजग नहीं होंगे, तब तक प्रदूषण और उससे होने वाली बीमारियाँ बढ़ती रहेंगी। समय है, अब हमें न केवल विकास, बल्कि “स्वस्थ विकास” की ओर कदम बढ़ाना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *