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इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी IVF आज निःसंतान दंपत्तियों के लिए एक बड़ी उम्मीद बनकर सामने आया है। यह तकनीक उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई है, जो प्राकृतिक तरीके से संतान प्राप्ति में असफल रहे हैं। लेकिन आजकल IVF को लेकर कई भ्रम और सवाल भी लोगों के बीच उभर रहे हैं। सबसे आम सवालों में से एक है – क्या IVF से मनचाहा (लड़का या लड़की) बच्चा पैदा किया जा सकता है?
इस ब्लॉग में हम IVF की प्रक्रिया, इसके विज्ञान, सीमाएं और भारत में इससे जुड़ी कानूनी स्थिति को सरल हिंदी में समझाने की कोशिश करेंगे।

IVF क्या है और यह कैसे काम करता है?

IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक कृत्रिम गर्भधारण तकनीक है, जिसमें महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को शरीर के बाहर (प्रयोगशाला में) मिलाया जाता है। जब भ्रूण बन जाता है, तब उसे महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  • अंडाणुओं का संग्रह (Ovum Retrieval)
  • शुक्राणु का संग्रह
  • दोनों को मिलाकर भ्रूण बनाना
  • भ्रूण का चयन और उसे गर्भाशय में डालना

यह तकनीक उन महिलाओं के लिए उपयोगी है जो या तो उम्र बढ़ने के कारण, या फिर किसी मेडिकल वजह से प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रही हैं।

क्या IVF से बच्चे का लिंग (जेंडर) चुन सकते हैं?

उत्तर है – नहीं (भारत में)
भारत में लिंग चयन करना कानूनन अपराध है, चाहे वह IVF से हो या किसी अन्य तरीके से।
PCPNDT Act (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act), 1994 के तहत भ्रूण के लिंग की पहचान करना और उसी आधार पर भ्रूण को चुनना पूरी तरह गैरकानूनी है।

हालांकि कुछ अन्य देशों (जैसे अमेरिका, थाईलैंड, आदि) में विशेष परिस्थितियों में “जेंडर सेलेक्शन” की अनुमति होती है – जैसे यदि परिवार में किसी खास जेंडर से जुड़ा जेनेटिक रोग हो। लेकिन भारत में ऐसा करना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि नैतिक रूप से भी अनुचित माना जाता है।

क्या IVF से बच्चे के रंग, कद या बुद्धिमत्ता को तय किया जा सकता है?

विज्ञान की मौजूदा स्थिति के अनुसार, IVF से बच्चे के कुछ जेनेटिक गुणों पर सीमित नियंत्रण संभव है, लेकिन यह भी केवल गंभीर आनुवंशिक बीमारियों से बचने के लिए किया जाता है – न कि सुंदरता, बुद्धिमत्ता या त्वचा के रंग के लिए।

हालांकि वैज्ञानिक “designer babies” की संभावना पर काम कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल यह एक शोध का विषय है और भारत में इसका कोई वैध उपयोग नहीं है।
इसलिए यह मानना कि IVF से बच्चा आपकी पसंद का चेहरा, रंग, या स्वभाव वाला हो जाएगा – पूरी तरह गलत है।

भ्रांतियां और सच्चाई: IVF और समाज में फैली गलतफहमियां

IVF को लेकर आम लोगों में कई भ्रांतियां फैली हुई हैं, जैसे:

  • IVF से केवल जुड़वा बच्चे होते हैं
  • इसमें हमेशा 100% सफलता मिलती है
  • इससे बच्चा ‘कृत्रिम’ होता है
  • यह अमीरों की तकनीक है

सच्चाई:

  • IVF से जुड़वा या ट्रिपल बच्चे होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन यह निश्चित नहीं है
  • सफलता दर 30–60% तक होती है, और यह महिला की उम्र व स्वास्थ्य पर निर्भर करती है
  • IVF से पैदा हुआ बच्चा उतना ही सामान्य और प्राकृतिक होता है जितना सामान्य प्रक्रिया से जन्मा
  • अब भारत में कई सरकारी अस्पतालों में भी IVF की सुविधा सस्ती दरों पर उपलब्ध है

नैतिकता और कानून: क्यों प्रतिबंध है ‘मनचाहा बच्चा’ चुनने पर?

भारत में सामाजिक असमानताओं और लिंग अनुपात में गिरावट के कारण, भ्रूण के लिंग की पहचान और चयन को गैरकानूनी करार दिया गया है।
अगर IVF के जरिए लिंग या कोई अन्य गुण चुनने की अनुमति दी जाए, तो यह समाज में और गहरी असमानता पैदा कर सकता है।
इसलिए सरकार और मेडिकल काउंसिल्स ने IVF में केवल निःसंतानता की समस्या का समाधान करने की अनुमति दी है, न कि मनचाही संतान को चुनने की।

निष्कर्ष:

IVF एक वैज्ञानिक वरदान है, लेकिन इसका उद्देश्य केवल निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख देना है, न कि समाज में एक नया असंतुलन पैदा करना।
क्या IVF से मनचाहा बच्चा पैदा किया जा सकता है?” इसका सीधा जवाब है – नहीं, और न ही ऐसा होना चाहिए।
हमें विज्ञान का उपयोग केवल जरूरत के अनुसार, नैतिकता और कानून के दायरे में रहकर ही करना चाहिए।

यदि आप या कोई जानने वाला IVF की प्रक्रिया पर विचार कर रहा है, तो किसी पंजीकृत और अनुभवी फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

स्रोत:

  • स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार
  • ICMR Guidelines on ART
  • PCPNDT Act, 1994

 

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