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ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder – ASD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल विकार (neurodevelopmental disorder) है, जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, संवाद कौशल, और सोचने की शैली को प्रभावित करता है। यह जन्म से होता है और आमतौर पर प्रारंभिक बाल्यावस्था (1-3 वर्ष की उम्र) में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। “स्पेक्ट्रम” शब्द इसीलिए उपयोग होता है क्योंकि इसके लक्षण और उनकी गंभीरता व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न हो सकती है।

ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान कैसे करें?

ASD के लक्षण आमतौर पर 12 से 24 महीनों के बीच स्पष्ट होने लगते हैं, हालांकि कुछ बच्चों में ये लक्षण और भी पहले दिख सकते हैं।

autism spectrum disorder

निम्नलिखित लक्षणों से इसकी पहचान की जा सकती है:

  1. सामाजिक संपर्क में कठिनाई:

    • आंखों में आंखें डालकर बात न करना

    • दूसरों के साथ भावनात्मक जुड़ाव की कमी

    • मुस्कुराने या चेहरों के हाव-भाव की नकल न करना

    • नाम पुकारे जाने पर प्रतिक्रिया न देना

  2. संवाद में कठिनाई:

    • भाषा का विकास देर से होना या बिल्कुल न होना

    • एक ही शब्द या वाक्य को बार-बार दोहराना (echolalia)

    • बात करते समय असामान्य टोन या लय

  3. दोहराव वाले व्यवहार और सीमित रुचियाँ:

    • एक ही काम को बार-बार करना (जैसे खिलौनों को कतार में लगाना)

    • किसी विशेष वस्तु या विषय में अत्यधिक रुचि होना

    • बदलाव पसंद न करना और दिनचर्या में परिवर्तन से परेशानी होना

  4. संवेदी संवेदनशीलता:

    • तेज रोशनी, आवाज या गंध से परेशान होना

    • किसी विशेष कपड़े या बनावट से असहज होना

ऑटिज्म के कारण क्या हैं?

ASD के सटीक कारण अभी पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक जटिल संयोजन है:

  • आनुवंशिक (genetic) कारण: परिवार में यदि किसी को ASD है तो अन्य सदस्यों में भी इसके होने की संभावना अधिक होती है।

  • मस्तिष्क का असामान्य विकास: मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली में अंतर पाया गया है।

  • पर्यावरणीय कारण: गर्भावस्था के दौरान कुछ संक्रमण, प्रदूषण, या कुछ दवाओं का सेवन भी संभावित कारण माने जाते हैं।

  • यह ध्यान रखना आवश्यक है कि टीके (vaccines) और ऑटिज्म के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है, यह एक मिथक है।

सावधानियाँ और घरेलू उपाय (Precautions):

ऑटिज्म को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन कुछ सावधानियाँ अपनाकर इसकी गंभीरता को कम किया जा सकता है:

  • गर्भावस्था में देखभाल: मां को संतुलित आहार लेना चाहिए, धूम्रपान, शराब और हानिकारक दवाओं से बचना चाहिए।

  • शिशु के विकास पर ध्यान देना: यदि बच्चा समय पर बोलना नहीं सीखता या आंखों में आंखें डालकर नहीं देखता, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

  • सकारात्मक वातावरण देना: बच्चे को शांत, संरचित और सहायक माहौल देना चाहिए।

  • संवेदनशीलता को समझना: यदि बच्चा कुछ आवाज़ों या गतिविधियों से परेशान होता है, तो उन्हें कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

इलाज और देखभाल:

ASD का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन समय पर हस्तक्षेप और सही थेरेपी से बच्चे की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार लाया जा सकता है:

  1. व्यवहारिक थेरेपी (Behavioral Therapy):
    ABA (Applied Behavior Analysis) जैसी तकनीकें व्यवहार सुधारने और सीखने में मदद करती हैं।

  2. स्पीच थेरेपी:
    संचार कौशल को बेहतर बनाने में सहायक होती है।

  3. ऑक्यूपेशनल थेरेपी:
    रोजमर्रा के काम जैसे खाना खाना, कपड़े पहनना आदि सिखाने में मदद करती है।

  4. सोशल स्किल्स ट्रेनिंग:
    बच्चों को दोस्ती करना, बात करना और समूह में रहना सिखाया जाता है।

  5. दवाएं:
    ASD का इलाज दवाओं से नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर बच्चे में अत्यधिक चिंता, चिड़चिड़ापन या नींद की समस्या हो तो डॉक्टर कुछ दवाएं लिख सकते हैं।

  6. विशेष शिक्षा (Special Education):
    ASD वाले बच्चों के लिए विशेष स्कूल या सिखाने के तरीके अपनाए जाते हैं, जो उनके विकास को बढ़ावा देते हैं।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि आपके बच्चे में निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत विशेषज्ञ बाल रोग विशेषज्ञ या मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें:

  • बच्चा 12 महीने तक भी कोई इशारा (जैसे अंगुली से दिखाना) नहीं करता

  • 16 महीने तक कोई शब्द नहीं बोलता

  • 24 महीने तक दो शब्दों वाले वाक्य नहीं बनाता

  • सामाजिक संपर्क में बिल्कुल रुचि नहीं लेता

  • संवाद करने के अन्य तरीकों (जैसे हाव-भाव, आवाज़ें) का प्रयोग नहीं करता

ध्यान रहे: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कोई बीमारी नहीं बल्कि एक अलग मानसिक और व्यवहारिक शैली है। यदि समय रहते इसके लक्षणों को पहचाना जाए और उपयुक्त चिकित्सा, देखभाल और समर्थन दिया जाए, तो ASD से ग्रसित व्यक्ति भी सामान्य जीवन जी सकता है, शिक्षा प्राप्त कर सकता है और कार्यस्थल पर भी सफल हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है – धैर्य, समझ और सहयोग।

परिवार, स्कूल और समाज यदि साथ मिलकर इन बच्चों को स्वीकार करें और उनका साथ दें, तो ये बच्चे भी अपने जीवन में विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

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