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जब एक नवजात शिशु पहली बार इस दुनिया में आंखें खोलता है, तो वह केवल एक नए जीवन की शुरुआत नहीं होती, बल्कि मां और बच्चे के बीच एक गहरा और अमूल्य जुड़ाव भी स्थापित होता है। जन्म के तुरंत बाद का पहला घंटा, जिसे ‘गोल्डन आवर’ (Golden Hour) कहा जाता है, चिकित्सा और भावनात्मक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस समय को सही तरीके से संभालना शिशु के जीवनभर के स्वास्थ्य और मां-बच्चे के संबंधों को मजबूत बना सकता है।

‘गोल्डन आवर’ वह पहला घंटा होता है जो शिशु के जन्म के तुरंत बाद शुरू होता है। इस दौरान मां और शिशु को एक-दूसरे के साथ त्वचा से त्वचा (skin-to-skin) संपर्क में रखा जाता है, जिससे बच्चे को गर्माहट, सुरक्षा और मां की धड़कनों का सुकून मिलता है। यह संपर्क शिशु को नई दुनिया में ढलने में मदद करता है और मां के साथ उसका भावनात्मक बंधन मजबूत करता है।

इस समय शिशु की सांस लेने, स्तनपान शुरू करने और मां के साथ बंधन बनाने की स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। यह प्राकृतिक और जैविक प्रक्रिया मां और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद होती है।

शिशु के लिए ‘गोल्डन आवर’ के फायदे:

  • शारीरिक स्थिरता: त्वचा से त्वचा संपर्क के दौरान शिशु की शरीर की गर्मी, दिल की धड़कन और सांस लेने की प्रक्रिया स्थिर होती है।

  • प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: मां का पहला दूध, जिसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है, शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और उसे कई बीमारियों से बचाता है।

  • स्तनपान की शुरुआत: गोल्डन आवर के दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से आगे चलकर शिशु को स्तनपान में कोई समस्या नहीं होती और मां का दूध बनना भी सुचारू रूप से शुरू होता है।

  • भावनात्मक जुड़ाव: इस समय मां की आवाज़, गंध और धड़कन से शिशु को भावनात्मक सुरक्षा मिलती है जिससे वह नई दुनिया में खुद को अकेला महसूस नहीं करता।

मां के लिए ‘गोल्डन आवर’ का महत्व:

  • ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्राव: शिशु को गोद में लेने और स्तनपान शुरू करने से मां के शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन निकलता है, जो प्रसव के बाद के रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है और मां को मानसिक शांति देता है।

  • भावनात्मक बंधन: शिशु को अपनी बाहों में लेकर, उसकी गंध और स्पर्श को महसूस करके मां को मातृत्व का पहला गहरा अनुभव होता है, जिससे वह मानसिक रूप से बच्चे के साथ जुड़ती है।

  • पोस्टपार्टम डिप्रेशन में कमी: रिसर्च से पता चलता है कि जिन माताओं को गोल्डन आवर का अनुभव मिलता है, उनमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन की संभावना काफी कम होती है।

अस्पतालों की भूमिका और सही देखभाल:

आजकल कई आधुनिक अस्पताल और प्रसूति केंद्र ‘गोल्डन आवर’ को प्रोत्साहित कर रहे हैं और इसे प्रसव योजना का हिस्सा बना रहे हैं। लेकिन अभी भी कई बार चिकित्सकीय कारणों या असावधानी के चलते यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती।

कुछ जरूरी कदम जो अस्पताल और देखभाल करने वाले स्टाफ को उठाने चाहिए:

  • शिशु को जन्म के तुरंत बाद मां की छाती पर रखा जाए।

  • नाल काटने और सफाई की प्रक्रिया जल्दी और आराम से की जाए।

  • अगर मां या बच्चे की स्थिति स्थिर हो, तो कम से कम पहले एक घंटे तक उन्हें अलग न किया जाए।

  • शिशु की प्राथमिक जांच वहीं मां के पास की जाए।

किन परिस्थितियों में ‘गोल्डन आवर’ टल सकता है?

कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे अगर मां या शिशु की तबीयत गंभीर हो, या जन्म के समय कोई जटिलता आ जाए, तो गोल्डन आवर को तुरंत लागू करना संभव नहीं होता। ऐसे मामलों में:

  • गोल्डन आवर को जैसे ही स्थिति सामान्य हो, तुरंत किया जा सकता है।

  • त्वचा से त्वचा संपर्क को आगे के दिनों में भी अपनाया जा सकता है जिसे “delayed golden hour” कहा जाता है।

इस दौरान परिवार का सहयोग और स्वास्थ्यकर्मियों की सजगता बहुत मायने रखती है।

निष्कर्ष:

गोल्डन आवर न सिर्फ एक जैविक प्रक्रिया है, बल्कि यह एक भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक जुड़ाव का अमूल्य अवसर भी है। यह समय मां और शिशु दोनों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य की नींव रखता है।

आज जब हम मातृत्व और नवजात देखभाल को लेकर जागरूक हो रहे हैं, तो गोल्डन आवर को अपनाना और समझना हर मां-बाप, डॉक्टर और समाज की जिम्मेदारी है। इसलिए अगली बार जब कोई शिशु जन्म ले, तो यह ध्यान रखा जाए कि उसका पहला घंटा सिर्फ समय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और जीवन का एक अनमोल खजाना है।

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