अक्सर माता-पिता यह दृश्य देखते हैं कि उनका नवजात या छोटा बच्चा दूध पीते-पीते अचानक सो जाता है। कुछ सेकंड पहले तक बच्चा भूख से रो रहा होता है और जैसे ही मां का दूध मिलना शुरू होता है, वो शांत होकर कुछ देर में आंखें मूंद लेता है और नींद की गोद में चला जाता है। यह नजारा जितना प्यारा होता है, उतना ही जिज्ञासा पैदा करता है – क्या दूध पीते समय सोना सामान्य है? या यह किसी समस्या का संकेत है?
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि बच्चे दूध पीते समय क्यों सो जाते हैं, इसके पीछे के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कारण क्या होते हैं, और कब माता-पिता को सतर्क होना चाहिए।
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दूध पीना है बच्चों के लिए एक मेहनत वाला काम
नवजात शिशु जब मां का दूध पीते हैं, तो उन्हें सक्शन (sucking), निगलना (swallowing) और सांस लेना (breathing) – इन तीन क्रियाओं को एक साथ करना होता है। यह प्रक्रिया बड़ों के लिए भले ही सामान्य हो, लेकिन छोटे बच्चों के लिए यह काफी ऊर्जा खर्च करने वाली होती है।
बच्चे दूध पीते समय मांसपेशियों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे थक जाते हैं। यही थकान उन्हें नींद की ओर ले जाती है।
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मां का दूध एक प्राकृतिक नींद की दवा जैसा
मां के दूध में कुछ ऐसे हार्मोन होते हैं जो नींद को बढ़ावा देते हैं। विशेष रूप से:
- मेलाटोनिन (Melatonin): यह हार्मोन शरीर को आराम और नींद की अवस्था में लाने में मदद करता है।
- ट्रिप्टोफैन (Tryptophan): यह एक अमीनो एसिड है जो सेरोटोनिन और फिर मेलाटोनिन में बदलता है – ये दोनों नींद को बढ़ाते हैं।
- ऑक्सीटोसिन (Oxytocin): जब मां दूध पिलाती है तो उसके शरीर में ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है, जिससे बच्चा भी रिलैक्स महसूस करता है।
इन हार्मोन का असर बच्चे के मस्तिष्क पर तुरंत होता है, जिससे वह सहज ही नींद में चला जाता है।
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पेट भरना लाता है सुकून और नींद
भूखा बच्चा बेचैन और रोता हुआ रहता है, लेकिन जैसे ही उसका पेट भरता है, उसे मानसिक और शारीरिक शांति महसूस होती है। यह संतोष और गर्माहट उसे गहरी नींद की ओर ले जाता है।
नवजातों का पेट बहुत छोटा होता है और उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में दूध पिलाया जाता है। दूध पीने के बाद पेट भरने की संतुष्टि उन्हें झपकी लेने के लिए प्रेरित करती है।
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मां की गोद और त्वचा से मिलती है सुरक्षा का अहसास
जब बच्चा मां का दूध पीता है, तो वह मां की छाती से चिपका होता है। मां की त्वचा की गर्माहट, उसकी सूंघने योग्य खुशबू, और दिल की धड़कनों की आवाज़ बच्चे को वैसा ही अहसास देती हैं जैसा उसे गर्भ में मिलता था।
यह सुरक्षित और शांत वातावरण उसे सहज रूप से नींद में पहुंचा देता है। यह एक इमोशनल बॉन्डिंग मोमेंट भी होता है, जो बच्चे को सुकून देता है।
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दूध पीते समय सो जाना कभी-कभी चिंता का कारण भी
हालांकि दूध पीते समय नींद आना आमतौर पर सामान्य होता है, लेकिन अगर बच्चा हर बार दूध की शुरुआत में ही सो जाए और पर्याप्त मात्रा में दूध न पी सके, तो यह चिंता का विषय बन सकता है।
संकेत जिन पर ध्यान देना चाहिए:
- बच्चा 10 मिनट से कम समय में सो जाए और दूध अधूरा रह जाए
- वजन ठीक से न बढ़ रहा हो
- पेशाब की मात्रा में कमी आए
- बच्चा अक्सर भूखा रहता है
ऐसे मामलों में डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी होता है। यह स्थिति “स्लीपी फीडर” कहलाती है और इसे सही तकनीक से सुधारा जा सकता है।
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कैसे सुनिश्चित करें कि बच्चा भरपूर दूध पी रहा है?
- दूध पिलाते समय हल्का झकझोरते रहें ताकि बच्चा पूरी नींद में न चला जाए
- स्तन बदलते समय थोड़ी देर के लिए डकार दिलाएं
- बच्चे के गालों को हल्के से सहलाएं
- दूध पिलाने का समय शांत और रोशनी से मुक्त हो
यदि बच्चा दूध पीते समय बार-बार सो जाता है, तो हल्के स्पर्श से उसे फिर से जगाने की कोशिश करें और उसे फिर से फीडिंग में लगाएं।
निष्कर्ष: समझदारी से संभालें दूध पीते समय की नींद
दूध पीते समय बच्चे का सो जाना ज्यादातर मामलों में स्वस्थ और सामान्य प्रक्रिया है। यह मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव और हार्मोनल प्रतिक्रियाओं का नतीजा होता है। हालांकि, यदि बच्चा हर बार दूध पीते समय जल्द ही सो जाता है और पर्याप्त पोषण नहीं ले पा रहा है, तो यह चिंता का कारण बन सकता है।
माता-पिता को बच्चे की फीडिंग पैटर्न पर ध्यान देना चाहिए और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। याद रखें, एक खुश, शांत और संतुष्ट बच्चा ही स्वस्थ विकास की दिशा में बढ़ता है।
प्यार से, समझदारी से और धैर्य से पालिए अपने नन्हे फरिश्ते को।