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महिलाओं के शरीर में हार्मोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इनमें से एक प्रमुख हार्मोन है एस्ट्रोजन (Estrogen), जो न केवल महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करता है, बल्कि उनकी त्वचा, हड्डियों, हृदय और मूड पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यह हार्मोन मुख्य रूप से अंडाशयों (Ovaries) में बनता है और यह यौवन से लेकर रजोनिवृत्ति (Menopause) तक शरीर की कई प्रक्रियाओं को संतुलित करता है।

जब शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर असंतुलित हो जाता है — विशेषकर जब यह घटने लगता है — तब अनेक शारीरिक और मानसिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए इस हार्मोन के महत्व, इसकी कमी के कारणों, प्रभावों और उपायों को जानना आवश्यक है।

एस्ट्रोजन की भूमिका और कार्य

महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन कई जरूरी कार्यों में भाग लेता है:

  • मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करता है
  • गर्भधारण में सहायता करता है
  • त्वचा और बालों को स्वस्थ बनाए रखता है
  • हड्डियों को मजबूत बनाता है
  • हृदय और रक्त नलिकाओं को सुरक्षित करता है
  • मूड और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करता है

इसके अलावा यह मस्तिष्क, मांसपेशियों और प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी असर डालता है। एस्ट्रोजन के बिना महिला शरीर का संपूर्ण विकास और कार्यप्रणाली प्रभावित हो जाती है।

एस्ट्रोजन की कमी के कारण

एस्ट्रोजन का स्तर कई कारणों से घट सकता है, जिनमें शामिल हैं:

  1. रजोनिवृत्ति (Menopause) – यह महिलाओं के जीवन का स्वाभाविक चरण है जिसमें अंडाशय एस्ट्रोजन का उत्पादन बंद कर देते हैं।
  2. ओवेरियन फेल्योर – जब अंडाशय समय से पहले कार्य करना बंद कर दें।
  3. अत्यधिक व्यायाम या वजन घटना – शरीर में फैट की कमी एस्ट्रोजन के स्तर को प्रभावित करती है।
  4. तनाव और नींद की कमी – लंबे समय तक तनाव और पर्याप्त आराम न मिलने से हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।
  5. थायरॉइड या पिट्यूटरी ग्रंथि में गड़बड़ी – यह ग्रंथियाँ हार्मोन नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  6. कुछ दवाओं या कीमोथेरेपी का प्रभाव – कैंसर इलाज या अन्य रोगों में प्रयुक्त दवाइयाँ एस्ट्रोजन के स्तर को कम कर सकती हैं।

एस्ट्रोजन की कमी के लक्षण और प्रभाव

जब शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा घटती है, तो इसके लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देने लगते हैं:

  • मासिक धर्म का अनियमित या रुक जाना
  • थकान और ऊर्जा की कमी
  • गर्म फ्लैश (Hot Flashes) और रात को पसीना
  • मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन या डिप्रेशन
  • यौन इच्छा में कमी और योनि में सूखापन
  • हड्डियों की कमजोरी और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा
  • त्वचा का रूखापन, बाल झड़ना
  • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और याददाश्त कमजोर होना

यदि इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए, तो यह दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

एस्ट्रोजन की कमी से उत्पन्न संभावित बीमारियाँ

  • ऑस्टियोपोरोसिस – हड्डियाँ कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं
  • हृदय रोग – एस्ट्रोजन हृदय को सुरक्षा देता है; इसकी कमी से हृदय रोग का खतरा बढ़ता है
  • यौन विकार – सेक्स में रूचि की कमी और शारीरिक असहजता
  • मनोवैज्ञानिक समस्याएँ – तनाव, डिप्रेशन और एंग्जायटी

इन बीमारियों से बचने के लिए एस्ट्रोजन का स्तर संतुलित बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

एस्ट्रोजन के स्तर को कैसे सुधारें

  • संतुलित आहार – सोया, अलसी के बीज, हरी सब्जियाँ, ड्राई फ्रूट्स और दूध उत्पादों में फाइटोएस्ट्रोजेन होता है जो शरीर में एस्ट्रोजन की कमी को पूरा करने में मदद कर सकता है।
  • नियमित व्यायाम – योग, वॉक और हल्के व्यायाम हार्मोन संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।
  • तनाव प्रबंधन – ध्यान, प्राणायाम, अच्छी नींद और सकारात्मक सोच जरूरी है।
  • डॉक्टरी परामर्श से हार्मोन थेरेपी (HRT) – यदि लक्षण गंभीर हों तो डॉक्टर की देखरेख में हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी करवाई जा सकती है।
  • प्राकृतिक पूरक (Supplements) – विटामिन D, कैल्शियम और ओमेगा-3 फैटी एसिड सप्लीमेंट्स उपयोगी हो सकते हैं।

डॉक्टर से कब संपर्क करें

यदि नीचे दिए गए लक्षण लगातार बने रहें या बढ़ते जा रहे हों, तो डॉक्टर से अवश्य मिलें:

  • मासिक धर्म में अनियमितता या रुक जाना
  • अचानक अत्यधिक थकान, चिड़चिड़ापन या उदासी
  • यौन संबंध के दौरान दर्द या सूखापन
  • हड्डियों में दर्द या बार-बार फ्रैक्चर
  • त्वचा या बालों में अचानक बदलाव

महत्वपूर्ण यह है कि स्वयं अनुमान लगाकर दवाइयाँ न लें। हार्मोन का संतुलन विशेषज्ञ की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।

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