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रेबीज एक घातक वायरल संक्रमण है जो आमतौर पर कुत्ते, बिल्ली, सियार, बंदर जैसे जानवरों के काटने या खरोंचने से इंसानों में फैलता है। इस बीमारी का वायरस—रेबीज वायरस (Rabies virus)—सीधे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। रेबीज का संक्रमण एक बार यदि पूरी तरह शरीर में फैल गया तो इसका कोई इलाज नहीं है, और यह लगभग 100% मृत्यु दर वाला रोग बन जाता है। यही कारण है कि इसके खिलाफ सावधानी और समय पर टीकाकरण ही सबसे कारगर उपाय माने जाते हैं।

आमतौर पर लोग मानते हैं कि रेबीज का टीका (Anti-Rabies Vaccine – ARV) लेने के बाद व्यक्ति पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है, लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि टीका लेने के बावजूद भी लोगों की मृत्यु हो जाती है। यह एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति है, जिसका कारण केवल टीका न होना नहीं बल्कि उससे जुड़ी कई अन्य महत्वपूर्ण बातें हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्यों रेबीज के इंजेक्शन के बाद भी मौत हो सकती है।

टीकाकरण में देरी या गलत समय पर लेना

रेबीज वायरस शरीर में बहुत तेजी से सक्रिय होता है, लेकिन इसका प्रभाव पूरी तरह दिखने में कुछ दिन से लेकर कुछ सप्ताह लग सकते हैं। यही वो “गोल्डन पीरियड” होता है जिसमें इलाज शुरू किया जाना बेहद जरूरी होता है।

  • अगर किसी व्यक्ति को काटने के बाद 24 घंटे के भीतर वैक्सीन नहीं दिया गया, तो वायरस शरीर में तेजी से फैल सकता है।
  • यदि टीकाकरण की पहली डोज सही समय पर नहीं लगी या फॉलो-अप डोज छूट गई, तो वैक्सीन की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

इसलिए यह जरूरी है कि काटे जाने के तुरंत बाद ही डॉक्टर से संपर्क किया जाए और वैक्सीनेशन शेड्यूल का सख्ती से पालन किया जाए।

घाव की गंभीरता और स्थान का असर

रेबीज के संक्रमण का असर इस बात पर भी निर्भर करता है कि:

  • काटा गया स्थान कितना संवेदनशील है (जैसे सिर, चेहरा, गर्दन या हाथ),
  • घाव कितना गहरा और बड़ा है,
  • क्या रक्त बहाव हुआ है,
  • और वायरस को तंत्रिका तंत्र तक पहुंचने में कितना समय लगेगा।

उदाहरण के लिए, सिर और चेहरे पर काटने की स्थिति में वायरस बहुत तेजी से मस्तिष्क तक पहुंच सकता है, क्योंकि वहां की नसें मस्तिष्क से निकट होती हैं। ऐसी स्थिति में, भले ही टीका दिया गया हो, लेकिन वायरस पहले ही असर दिखा सकता है।

इम्युनोग्लोब्युलिन (Rabies Immunoglobulin – RIG) की अनदेखी

रेबीज के गंभीर मामलों (कैटेगरी-III बाइट्स, जैसे कि गहरे जख्म, खून बहने वाला घाव, या कई बार काटे जाना) में केवल वैक्सीन काफी नहीं होता। ऐसे मामलों में रेबीज इम्युनोग्लोब्युलिन (RIG) की जरूरत होती है, जो शरीर को तत्काल एंटीबॉडी प्रदान करता है।

  • यदि RIG समय पर नहीं दिया गया या गलत तरीके से दिया गया, तो वायरस को निष्क्रिय करने में देरी होती है और संक्रमण फैल सकता है।
  • बहुत से लोग केवल वैक्सीन लगवाते हैं और RIG की अनदेखी करते हैं, जो घातक साबित हो सकता है।

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (Weakened Immunity)

कुछ लोगों की इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) इतनी कमजोर होती है कि टीका लगाने के बाद भी शरीर पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं बना पाता। यह समस्या विशेष रूप से:

  • बुजुर्गों में
  • छोटे बच्चों में
  • कैंसर या HIV/AIDS जैसे रोगों से ग्रसित लोगों में
  • स्टेरॉयड या कीमोथेरेपी जैसी दवाएं लेने वालों में देखी जाती है।

ऐसे लोगों के लिए अतिरिक्त देखभाल, नियमित मॉनिटरिंग और अधिक सतर्कता जरूरी होती है।

गलत टीका या खराब गुणवत्ता

कुछ दुर्लभ मामलों में, टीका की गुणवत्ता भी मौत का कारण बन सकती है। यदि:

  • वैक्सीन को सही तापमान में स्टोर नहीं किया गया हो,
  • नकली या एक्सपायर्ड वैक्सीन इस्तेमाल की गई हो,
  • इंजेक्शन लगाने की तकनीक गलत हो,

तो भी व्यक्ति को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलती और संक्रमण फैल सकता है। इसलिए हमेशा सरकारी अस्पताल या प्रमाणित मेडिकल सेंटर से ही टीकाकरण करवाना चाहिए।

निष्कर्ष: सावधानी ही सुरक्षा है

रेबीज एक ऐसा रोग है जिसे समय पर सही इलाज से 100% रोका जा सकता है, लेकिन जरा-सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। यदि कोई जानवर काट ले तो:

  1. घाव को तुरंत 15-20 मिनट तक साबुन और पानी से धोएं,
  2. तुरंत डॉक्टर के पास जाएं,
  3. वैक्सीनेशन शेड्यूल पूरा करें,
  4. यदि जरूरत हो तो RIG जरूर लगवाएं।

कभी यह सोचकर लापरवाही न करें कि “टीका तो लगवा लिया है, अब कुछ नहीं होगा।” रेबीज के मामले में समय पर और सही तरीका अपनाना ही जीवन रक्षा की कुंजी है। टीके के बाद भी मृत्यु की खबरें इसी बात की चेतावनी हैं कि इस रोग को कभी हल्के में न लें।

 

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